20 August, 2009


प्रकृति निर्झर का मानवीकरण

मानव के लिये संदेश



इस कविता में डा रामकुमार वर्मा जी ने हमारे लिये जो संदेश दिया है, वह मेरे मत में इस प्रकार है :-

"अरे, निर्जन वन के निर्मल निर्झर,
इस एकांत प्रांत प्रांगण में
किसे सुनाते सुमधुर स्वर ?
अरे, निर्जन वन के निर्मल निर्झर । "

निर्झर के कई गुण हैं ,सबसे अच्छा गुण उसका सुमधुर स्वर है। वह अपने स्वर को निर्जन वन में सुनाता है यानि यह कोई भी नहीं सुन सकता। इस प्रकार मानव भी अपनी क्षमताओं को छिपाकर रखता है। उसकी जो जो क्षमताएं हैं, उसको दूसरों के सामने दिखाना मानव का कर्तव्य है।

"अपना ऊँचा स्थान त्यागकर
क्यों करते हो अधःपतन ?
कौन तुम्हारा वह प्रेमी है
जिसे खोजते हो वन वन ?"

मानव जो कुछ भी करते हैं, वह सब दूसरों को दिखाने के लिये करते हैं। दूसरों के सामने अनुचित काम मत करो । बिना कोई लक्ष्य के जीवन में आगे बढना कैसे हो सकता है?

"विरह व्यथा में अश्रु बहाकर,
जलमय कर डाला सब तन !
क्या धोने को चले स्वयं,
अविदित प्रेमी के पद रज कण ?"

मानव का अविदित प्रेमी, बिना कोई लक्ष्य की जीवन यात्रा व्यर्थ है। पहले अपने लक्ष्य को जानो, फिर उसकी ओर बढो।

"लघु पाषाणों के टुकडे भी,
तुमको देते हैं ठोकर ?
क्षण भर ही विचलित होकर,
कंपित होते हो गति खोकर ।"

मानव जब लक्ष्य की ओर बढना शुरू करता है, दूसरे उस रास्ते पर विघ्न बनकर खडे हो जाते है। वह कुछ देर के लिये गति खो देता है।

"लघु लहरों के कंपित कर से,
करते उत्सुक आलिंगन ।
कौन तुम्हें पथ बतलाता है ,
मौन खडे हैं सब तरुगन ।"

लक्ष्य तक पहूँचने का रास्ता सब से पूछ्ने पर भी कोई नहीं बताता। पहले जो विघ्न बनकर खडे थे, वे कैसे तुम्हें रास्ता दिखायेंगे?

"अविचल चल, जल का छल-छल
गिरि पर गिर-गिर कर कल-कल स्वर ।
पल-पल में प्रेमी के मन में,
गूँजे ए कातर निर्झर !"

इस प्रकार आगे बढते जाने वाले लक्ष्य युक्त मानव को देखकर, लक्ष्य हीन लोग ज़रूर आंसू बहायेंगे।

ए मानव, तुम पहले अपना लक्ष्य तय करो, फिर आगे बढो!!!

17 August, 2009


जाल, जहाज़ और मछुवारे।


सामजिक समस्या - " बाल श्रम "


बाल श्रम पर कुछ विचार :-भारत सरकार ने हाल ही में कानून बनाया है कि पाँच से चौदह साल तक के बच्चों के लिए मुफ्त और ज़बरदस्त शिक्षा किसी भी हाल में देना चाहिए। लेकिन भारत के बच्चों का हाल अब कैसा हैं, ज़रा देखें :-


बाल श्रम रोकने का दायित्व माता पिता को है, समाज को है, हम पर है। अपने बच्चों का अपने भविष्य का पालन पोषण करना हमारा दायित्व है। विदेशों में ऐसा कानून व नियम है कि जो माता पिता अपने बच्चों का पालना पोषण ठीक तरह से नहीं करते, जो बच्चों को सताते है, उनको सज़ा दी जाती है, और उन नियमों का पालन करने में वहाँ की पुलीस और सरकारी अधिकारी जागरूक हैं। भारत में तो कानूनों की बहुतायत है पर पुलीस अधिकारी रिश्वत लेकर उन नियमों का पालन करने में असमर्त्थ निकलते हैं।

16 August, 2009

अहा, सब कुछ ले गया।
"काश, कुछ रुपये भी मिल जाते तो अच्छा होता ? "