15 September, 2010

एक भिखारी की आत्म कहानी

जाडे का प्रात:काल था। शरीर को कम्पित करनेवाला शीत पड रहा था। घर के सारे व्यक्ति बैठे हुए चाय पी रहे थे। आनन्द का वातावरण अपनी चरम सीमा पर था - तभी द्वार पर से किसी ने पुकारा, " भगवान तुम्हारा भला करे, दो रोटी का आटा दिला दो।" इस एक पुकार की तो हम में से किसी ने लेशमात्र भी चिन्ता न की, परंतु जब थोडी देर के बाद पुन: वही करुण एवं दीनता से भरे हुए शब्द सुनाई पडे तो मैं उठा। उस समय मेरे मन में उस भिक्षुक के प्रति दया नहीं थी बल्कि मैं सोच रहा था कि ये भिक्षुक कार्य क्यों नहीं करते? ये समाज पर भार बनकर क्यों रहते हैं? इस प्रकार के विचारों में निमग्न मैं दरवाज़े पर गया। वहाँ एक दीन वृद्ध भिखारी को देखा, जो ठंड के कारण थर-थर काँप रहा था। भूख के कारण रो रहा था। जाडे से बचने के लिए उसके पास पर्याप्त वस्त्र भी नहीं थे। मैं ने कहा, "आओ अंदर, मैं तुम्हें भोजन दे दूँगा।" और वह भिखारी घर के भीतर चला आया। मैं ने उसे खाने के लिए रोटियाँ दीं और वह खाने लगा। भोजन करके जब वह निवृत्त हुआ तो मैं ने पूछा, "तुम इस वेदना एवं दुख से भरी हुई अवस्था को किस प्रकार प्राप्त हुए?”

मेरे इस प्रश्न को सुनकर क्षण भर उसने मेरी ओर देखा और बोला – “बाबूजी, इन बातों में क्या लोगे? यदि जानना ही चाहते हो तो सुनो। जहाँ तक मुझे याद है, जब मैं छोटा था तब मेरे घर में किसी प्रकार का अभाव नहीं था। किन्तु समय बदलता रहता है, क्योंकि कभी दिवस है और कभी अँधेरी रात। किसी मनुष्य को सर्वदा सुख नहीं मिला करता और यही मेरे साथ भी हुआ था।

मैं एक किसान परिवार का सदस्य हूँ। मेरे पूर्वज खेती करते थे। मैं भी पहले खेती करता था। जब आय कम और खर्च ज़्यादा पडने लगे तो गाँव के ज़मींदार से कर्ज़ लेकर खेती करने लगा। कर्ज़ कैसे चुकाता? पहले तो बैल बेचा। अंत में खेत को गिरवी रखकर कर्ज़ चुकाया। फिर क्या करूँ? अब तो खेत भी नहीं रहा और मैं किसान भी नहीं रहा।

पहले मज़्दूरी करता था। खेती के अलावा कुछ जानता भी नहीं था। कहीं नौकरी करके जीवन बिता लूँ तो कहाँ मिलती है इस बुढे को नौकरी ?

बाबूजी, समाज हमें फटकारता है। पर क्या वह कभी सोचता है कि इतने भूखों की जीविका का प्रबंध कैसे किया जाय ? भिक्षा तो हम लोगों को विवश होकर माँगनी पडती है। कौन ऐसा होगा, जो कि मेहनत व मज़दूरी करने के बजाय दर-दर फटकार सुनने के लिए जाएगा ? भिखारी तो जीवित ही मृतक के समान होता है। मैं भी अब निराश्रित होकर भीख माँगता फिरता हूँ, यदि भीख न माँगूँ तो इस वृद्ध अवस्था में क्या करूँ ? आँखों से दिखाई नहीं देता, दो डग चलने पर कदम लडखडाने लगते हैं।

भिखारी के जीवन की इस कष्टमय कहानी सुनकर मेरी आँखों से आँसू निकल पडे। मैं ने सोचा, मनुष्य का भाग्य कितना क्रूर होता है ! मनुष्य को वह कितना बदल डालता है।

अवलम्ब : आदर्श हिंदी निबंध

14 September, 2010

आज हिंदी दिवस

प्यारे अध्यापक बंधुओं, केरल के स्कूलों में इस शुभ अवसर पर हम क्या-क्या कार्यक्रम चला सकते हैं ?

प्रातः सभा में प्रार्थना गीत।

प्रातः सभा में भाषण (विषय - राष्ट्रभाषा का महत्व)

प्रातः सभा में चर्चा (विषय – नई पीढी की दृष्टि में भाषा का उपयोग)

प्रातः सभा में कविता आलापन।

स्कूल की हिंदी सभा में प्रतियोगिताएँ - वाचन, लेखन आदि।


आप के लिए एक प्रार्थना गीत --

हम को मन की शक्ति देना, मन विजय करें
दूसरों की जय से पहले, खुद की जय करें
हम को मन की शक्ति देना ...

भेद-भाव अपने दिल से, साफ़ कर सकें
दूसरों से भूल हो तो, माफ़ कर सकें
झूठ से बचे रहें, सच का दम भरें
दूसरों की जय से पहले, खुद की जय करें
हम को मन की शक्ति देना ...

मुश्किलें पड़ें तो हम पे, इतना कर्म कर
साथ दें तो धर्म का, चलें तो धर्म पर
खुद पे हौसला रहे, सच का दम भरें
दूसरों की जय से पहले, खुद की जय करें
हम को मन की शक्ति देना ...

देखें इसकी विडियो ...

सारे हिंदुस्तानियों और हिंदी प्रेमियों को हिंदी दिवस की शुभ कामनाएँ !

10 September, 2010

आखिर, ईश्वर है कि नहीं ???

एक दिन एक आदमी नाई की दूकान अपने बाल काटने और दाढी काट छाँट करने गया। जैसे ही नाई ने अपना काम शुरू किया, दोनों ने बातें करना भी शुरू किया। उन दोनों ने कई बातें की, और बातें करते करते ईश्वर के बारे में चर्चा शुरू किया।

नाई बोला, "ईश्वर का कोई अस्तित्व है, इस पर मैं विश्वास नहीं रखता।"

ग्राहक ने पूछा, "भई, ऐसा क्यों कहते हो, यह अनुचित है। "

जवाब में नाई बोला, "आप बाहर जाकर गलियों में देखिए, तब पता जाएगा कि इस दुनिया में ईश्वर का कोई अस्तित्व है कि नहीं।
अगर
इस दुनिया में ईश्वर का कोई अस्
तित्व होता तो, लोगों को बीमारियाँ क्यों लगती , दर्द क्यों सहनी पडती ?
अनाथ
बच्चे, भुखमरे, लंगडे, अंधे ये सब क्यों हैं यहाँ ?
ईश्वर
ऐसा क्यों होने देता है ?"


हमारे ग्राहक भैया ने पहले सोचा, फिर चुप हो गये। उन्होंने कुछ ज्य़ादा कहना नहीं चाहा।

नाई ने काम पूरा किया और ग्राहक पैसे देकर बाहर चला गया।
जैसे
ही ग्राहक नाई की दूकान से बाहर निकला, उसकी नज़रें एक बूढे आदमी पर पडीं।
वह
बूढा आदमी बहुत ही दर्दनाक स्थिती में था।
वह बहुत गंदा और लंबे लंबे बिखरे बालोंवाला था, उसके दाढी और केश कर्तन किए मानो, कई साल हो गये हो।
ग्राहक
के दिमाग में कोई सोच घुसकर आयीं।

वह
तुरंत वापस नाई के दूकान का दरवाज़ा खोला, और नाई से बोला,
"इस दुनिया में नाई लोग खतम हो गये हैं। "

यह सुनकर नाई बेचैन हो गया। उसने पूछा, " ऐसी क्या बात हो गयी? अभी अभी तो मैं ने आप के केश कर्तन किये थे, मैं एक नाई हूँ। "


ग्राहक बोला, " अगर आप नाई हैं तो यहाँ लंबे लंबे बिखरे बाल और दाढीवाला आदमी क्यों है, जैसे बाहर दीख रहा है ? "

"ओह, ऐसी बात?", नाई बोला, "वह तब होता है, जब लोग नाई के पास नहीं आते।"

हाँ, हाँ, वही बात।, ग्राहक ने दृढतापूर्वक कहा ,वही बात है, वास्तव में कि ईश्वर का अस्तित्व है।

इतनी आफत और परेशानियाँ लोगों को होती है तो इसका दोष ईश्वर पर मत डालोलोगों के मन में ईश्वर का विचार नहीं है, इसलिए सब वेदनाएँ होती है।।।

तेरा साई तुझ में, ज्यों पुहुपन में बाँस
कस्तूरी
का मिरग ज्यों ढूँढै फिरि फिरि घास ।।

07 September, 2010


कहानी - प्यार, विजय और धन की

एक घर में साँस, ससुर और बहू रहते थे। एक दिन साँस घर के बाहर आयी तो उसने देखा कि तीन बूढे आदमी घर के सामने एक पेड के नीचे बैठे हैं। उनको देखकर साँस ने सोचा कि वे भिखारी होंगे। साँस ने उनसे कहा - " आप मेरे घर आइए। खाना खाकर जाना।" तीन बूढों में से एक बोला - " हम तीनों ऐसे वहाँ नहीं आ सकते। मैं धन हूँ, ये मेरे मित्र विजय और प्यार हैं। आप हम में से किसी एक को ही घर बुला सकते हैं।" साँस बोली कि मैं अपने पति से पूछ्कर बताऊँगी। वे अंदर गयीं। अपने पति से सारी बातें बतायीं। पति बोल उठे,

" हमन को ही बुला लेंगे, ताकि हमारा घर संपत्ति से भर जाए। " यह सुनकर साँस बोली, "नहीं हम विजय को बुला लेंगे, ताकि हमें हर समय विजय मिल जाएगी।" यह सुनकर बहू वहाँ आयी। वह बोली, "माँजी, हम प्यार को घर पर बुला लेंगे, अगर प्यार है तो विजय और धन दोनों मिल जाएँगे।" साँस बोली, " यह तो अच्छी बात है, हम पहले प्यार को ही बुलाएँगे।"

इतना कहकर वह बाहर चली गयी। वहाँ तीनों बूढे उनका इंतज़ार कर रहे थे। उनको देखते ही साँस बोली, "धन भैया और विजय भैया, आप मुझसे क्षमा करें। हम पहले प्यार को ही अंदर बुला सकते हैं।" यह सुनकर विजय बोल उठा, " आपने ठीक ही किया है, अब हम तीनों तुम्हारे घर आएँगे। प्यार के बिना हम दोनों कहीं जाते नहीं हैं। अगर आप धन को या मुझको बुला लेते तो हम तीनों कभी तुम्हारे घर आनेवाले नहीं थे।"