दसवीं का नया पाठपुस्तक आप के सम्मुख है। पहली इकाई की कविता पर एक प्रयास, जुर्रत के लिए माफी...
पहली नज़र कवि पर...
नाम : ज्ञानेंद्रपति जीजन्म स्थान : गाँव पथरगामा, झारखंड, भारत
कुछ प्रमुख कृतियाँ:
आँख हाथ बनते हुए (1970);
शब्द लिखने के लिए ही यह कागज़ बना है (1981);
गंगातट (2000);
संशयात्मा (2004);
भिनसार (2006)
शब्द लिखने के लिए ही यह कागज़ बना है (1981);
गंगातट (2000);
संशयात्मा (2004);
भिनसार (2006)
ज्ञानेंद्रपति की एक कविता --
प्यासा कुआँ
प्यास बुझाता रहा था जाने कब से
बरसों बरस से
वह कुआँ
लेकिन प्यास उसने तब जानी थी
जब
यकायक बंद हो गया जल-सतह तक
बाल्टियों का उतरना
बाल्टियाँ- जो अपना लाया आकाश डुबो कर
बदले में उतना जल लेती थीं
प्यास बुझाने को प्यासा
प्रतीक्षा करता रहा था कुआँ, महीनों
तब कभी एक
प्लास्टिक की खाली बोतल
आ कर गिरी थी
पानी पी कर अन्यमनस्क फेंकी गई एक प्लास्टिक-बोतल
अब तक हैण्डपम्प की उसे चिढ़ाती आवाज़ भी नहीं सुन पड़ती
एक गहरा-सा कूड़ादान है वह अब
उसकी प्यास सिसकी की तरह सुनी जा सकती है अब भी
अगर तुम दो पल उस औचक बुढ़ाए कुएँ के पास खड़े होओ चुप।
नदी और साबुन पर बनी वीडियो देखिए...
6 comments:
wah!
bahathareen presthithi
hamare sath rahiyee...
nice
mere bachom ko bahut faayadaa milaa ,sukriyaaaaaa
very
useful
Mere Chaatrom ke liye bahuth Laabhadaayak hogaa.
बहुत अच्छी रचना हैं।
Post a Comment