16 September, 2009

ओज़ोन ही क्यों ??

आज सितंबर 16, ओज़ोन दिन। फ़्रान्स के भौतीकी वैज्ञानीक चार्लस फ़ैब्री और हेनरी ने सन 1913 ईं में ओज़ोन परत के बारे में जानकारी प्राप्त की। oxygen के तीन कण मिलकर ओज़ोन बन जाता है। पृथ्वी से दस किलोमीटर से पचास किलोमीटर तक के stratosphere में ओज़ोन की 91 प्रतिशत भाग पायी जाती है। सूरज की पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी तक पहूँचने से रोकनेवाली ओज़ोन की मोटी परत, एक छतरी के समान हमारी रक्षा करती आ रही है।
पराबैंगनी किरणें मानव और अन्य जीव जंतुओं के लिए बडी हानिकारक हैं। लेकिन कारखानों और चौबीसों घंटे अनवरत दौडनेवाली मोटर गाडियों से निकलनेवाली धुआँ, ओज़ोन को बिगाड देती है। बरफ बनानेवाले घरेलू यंत्र, प्लास्टीक चीज़ें आदि से निकलनेवाली क्लोरो फ्लोरो कारबन, ओज़ोन की परत को पतली बनाने के कारण बन जाते हैं। सन 1987 में अमरिका के मोंट्रियोल में हुई चर्चा में इस नतीजे पर पहूँची है कि हम सब ओज़ोन के शोषित होने के ज़िम्मेदार हैं। "सब जनों की हिस्सेदारी - ओज़ोन की सुरक्षा, सब को एकत्रित कर सकती है। " यही आज का विचार है। चलो, आज हम यह प्रतिज्ञा लें कि हम सब ओज़ोन की सुरक्षा में भगीदार बनेंगे।
पराबैंगनी किरणें पृथ्वी तक पहूँची तो क्या क्या हो सकता है - ज़रा देखें :-



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