नसीरुद्दीन का भाषण
एक बार नसीरुद्दीन के गाँववालों ने एक सभा का आयोजन किया। यह भी निश्चित किया गया कि मुल्ला नसीरुद्दीन उस में भाषण दें। नसीरुद्दीन बोले, मैं तो भाषण के लिए तैयार ही नहीं हूँ। एक गाँववाला : "अरे मुल्ला, कुछ तो कहो। देखो सब लोग तुम्हारी अक्लमंदी की बातें सुनने के लिए आए हैं। "
सब मिलकर :"हाँ, हाँ कहो, कुछ तो कहो, हम सुनना चाहते हैं। "

मुल्ला : "ओहो, अरे, इन लोगों से क्या, कैसे बताऊँ, हाँ, हाँ, क्या आप लोग जानते हैं मैं क्या कहनेवाला हूँ ?"
लोग :"नहीं, नहीं, हम नहीं जानते.."
मुल्ला : "तो फिर आप से कुछ कहने का क्या फायदा ? आप तो यह तक नहीं जानते कि मैं क्या कहूँगा, ऐसे लोगों को कुछ कहना बेकार है। "
सब मिलकर :"अरे अरे मुल्ला, हम तुम्हें ऐसे नहीं जाने देंगे । "
मुल्ला : "पर आप तो यह नहीं जानते कि मैं क्या कहनेवाला हूँ । "
कुछ लोग : "हम जानते हैं, जानते हैं।"
मुल्ला : "लो, कर लो बात..., अगर जानते हैं, तो उसी बात को दोहराने का

कुछ लोग : "हमें पता है... आप क्या कहनेवाले हैं।"
और कुछ लोग : "हमें नहीं पता कि आप क्या कहेंगे ?"
मुल्ला : "तो फिर ठीक है, जिन्हें पता है कि मैं क्या कहनेवाला हूँ, वे उनको बता दें जिन्हें नहीं पता कि मैं क्या कहूँगा।"
और मुल्ला मंच से उतरकर भाग गये ।
इस से क्या जानकारी मिलती है ...
समाज में कुछ ऐसे लोग है जो अपने आप को बहुत ऊँचा और सभ्य समझते हैं। वे दूसरे लोगों को चकमा देकर अपना कर्तव्य निभाने से दूर भागते और दूसरों को दोषी ठहराते भी हैं। ज़रा ऐसे लोगों से बचे रहें...
अब देखें इसकी वीडियो (Youtube में भी ...)