
भोपाल महाविपदा का पच्चीसवाँ सालगिरा…
3 दिसंबर ,1984 के आधी रात को मध्यप्रदेश के भोपाल के यूणियन कारबैड रासायनिक उरवरक कारखाने से मीथैल ऐसोसैनैट वायु बाहर आया और लगभग तीन हज़ार लोगों की मृत्यु हुई थी। तीन दिन में दस हज़ार से अधिक लोगों की मृत्यु हुई और आज तक पच्चीस हज़ार से अधिक लोगों को परलोक पहूँचायी है। उन सब लोगों को वायु में दूषित हवा मिलने के कारण ही अपना जीवन खो देना पड रहा है। वायु प्रदूषण के पच्चीस साल बीत जाने पर भी, उन दिनों जो मलिन विषैली व


आज की माँग क्या है?
सरकार के द्वारा उन लोगों को सुविधाएँ दिलाना, जो इस महाविपदा के शिकार बने थे। भोपाल में जो महाविपदा हुई थी, उन जैसी विपदाओं को किसी भी हालत में रोकना चाहिए। सरकार की ओर से जब कारखाने खोलने के लिए अनुमति दी जाती है, तब वहाँ के लोगों की हालत क्या है, वहाँ के पीने का पानी का क्या होगा, वहाँ की वनस्पतियों को क्या होगी, उनके संरक्षण के लिए कारखाने खोलनेवालों की ओर से क्या कदम होगी, इन सबके बारे में सोच विचार करने के बाद ही अनुमति देनी चाहिए। इन सब बातों सब से अहम बात वहाँ के लोगों की जान को देनी होगी। कारखाने खोलने से पहले सब पहलुओं पर गौर से सोच विचार नहीं करेंगे तो भोपाल जैसी महाविपदाएँ इस देश में फिर कटेगी और खुदा से अर्ज की गयी जान फिर से काल के मुँह में जाकर काँपेगी, जिसकी बचाव करने के लिए इस दुनिया का कोई भी सरकार काबिल नहीं रहेगी। कल भोपाल में जो "जन सघरष मोरचा " की परिचर्चा हुई थी, उसमें विभिन्न सरकारों को आज की दु

काला समय सूची : 1969 : यूनियन कारबैड इंडिया लिमिटड कारखाने की शुरुआत। 1979 : मीथैल ऐसोसैनैट उत्पादन की शुरुआत। 1984 : (3 दिसंबर रात 11.30 बजे) कारखाने की 610 पैप से गैस टपकने लगी। : कारखाने की भोंपू बजने लगी ताकि कर्म

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