01 December, 2009


" सचाई की छोटी कहानी "

दो भाई कहीं जा रहे थे। दोनों को रास्ते में पडे कुछ रत्न मिले।
दोनों ने उसको बाँट लिया। छोटा भाई बोला :"भैया, मैं घर वापस जा रहा हूँ।"
पर बडे भाई एक रत्न छोटे भाई को देते हुए बोले : "मैं कहीं जाकर इन रत्नों को बिकने के बाद ही आऊँगा
, तू मेरे घरजाकर मेरी पत्नी को यह रत्न मेरी तरफ से भेँट करना।"
"आप घबराइए मत। भाभीजी को मैं यह दे दूँगा। आप निश्चिंत होकर जाइए
"
दोनों
अपने अपने रास्ते चले गये।
कुछ
दिन बीत जाने पर बडा भाई वाप
आया।
उसने
आते ही पत्नी से रत्न के बारेमें पूछा।
पत्नी बोली: "अरे, छोटा भाई तो मुझे कुछ नहीं दिया। कहीं भूल गया होगा। "
बडे
भाई ने छोटे भाई से जाकर पूछा तो छोटा बोल उठा : "मैंने भाभी को उसी दिन दे दिया था। कहीं वह झूठ तो नहीं बोल रही हैं?"
बडे
भाई असमंजस में पड गये। उन्होंने एक न्यायाधीश के पास जाकर शिकायत की।
न्यायाधीश
ने तीनों कोबुलाया।

वे
बोले: "कल आप तीनों एक एक मिट्टी का रत्न बनाकर लाइए। पर किसी को दिखा
ना मत। "
अगले दिन ठीक समय पर तीनों गये दोनों भाइयों का रत्न एक समान था। लेकिन बडे भाई की पत्नी ने मिट्टीसे सिर्फ एक गोल ही बनाकर लाई थी। न्यायाधीश सब कुछ समझ गये और छोटे भाई को तीन वर्ष की सख्त सज़ा दी।
संदेश
: सच को हमेशा के लिए छिपाकर रखना मुमकिन नहीं है।

2 comments:

kavita verma said...

sach to sach hai ek din samane aa hi jaata hai.sunder.

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

सच का सामना में तो छिप जाता था!!!!! ये मजाक में है................
कहानी प्रेरक है, बधाई