11 October, 2009


कुँवर नारायन जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया।

41 वाँ ज्ञानपीठ पुरस्कार हिंदी के प्रमुख कवि कुँवर नारायन जी को दिल्ली में हमारे रष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटील ने पिछ्ले मँगलवार को प्रदान किया। सँसद के पुस्तकालय के बालयोगी मंच में यह कार्य संपन्न हुआ।
कुँवर नारायन जी का जन्म 19 सितंबर, 1927 को हुआ था। अब वे अपनी पत्नी और पुत्र के साथ दिल्ली में रहते हैं ।



उनकी कुछ रचनाएँ :-

चक्रव्यूह (1956)
तीसरा सप्तक (1959)
परिवेश : हम - तुम (1961)
आत्मजयी (1965)
आकारों के आसपास (1973)
अप्ने सामने (1979)
कोई दूसरा नहीं (1993)
आज और आज से पहले (1998)
मेरे साक्षात्कार (1999)
इन दिनों (2002)
साहित्य के कुछ अंतर - विषयक संदर्भ (2003)
वाजश्रवा के बहाने (2008)

भारत ने इस महान रचनाकार को इन पुरस्कारों से सम्मानित किया है:-

'आत्मजयी' के लिए हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार (1971)
'आकारों के आसपास ' के लिए प्रेमचंद पुरस्कार (1973)
'अपने सामने' के लिए कुमारनाशान पुरस्कार (1982) और तुलसी पुरस्कार (1982)
हिंदी संस्थान पुरस्कार(1987)
'कोई दूसरा नहीं' के लिए व्यास पुरस्कार (1995), भवानी प्रसाद मिश्रा पुरस्कार (1995), शतदल पुरस्कार (1995) और साहित्य अकदमी पुरस्कार (1995)
लोहिया पुरस्कार (2001)
कबीर पुरस्कार (2001)
शलाका पुरस्कार (2006)
और अब ज्ञानपीठ पुरस्कार (2008)

आईए उनकी एक कविता पढें :-

क्या वह नहीं होगा ??

क्या फिर वही होगा
जिसका हमें डर है ?
क्या वह नहीं होगा
जिसकी हमें आशा थी ?

क्या हम उसी तरह बिकते रहेंगे
बाज़ारों में
अपनी मूर्खताओं के गुलाम ?

क्या वे खरीद ले जाएँगे
हमारे बच्चों के दूर देशों में
अपना भविष्य बनवाने के लिए ?

क्या वे फिर हमसे उसी तरह
लूट ले जाएँगे हमारा सोना
हमें दिखलाकर काँच के चमकते टुकडे ?

और हम क्या इसी तरह
पीढी - दर - पीढी
उन्हें गर्व से दिखाते रहेंगे
अपनी प्राचीनताओं के खंडहर
अपने मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे ?


(कविता का मलयालम रूप देखने के लिए चित्र पर क्लिक करें।)

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