08 June, 2013
07 June, 2013
06 June, 2013
05 June, 2013
01 January, 2012
नव वर्ष की शुभ कामनाएँ
प्यार भरी शुभ कामनाएँ ।
नव वर्ष आप के लिए प्यार, खुशी और चमचमाता भविष्य की शुभारंभ बने ।
जब आप कुछ खास चाहें, तब आप सच्चा प्यार पाएँ ।
जब आप को पैसे की ज़रूरत हो, तो आप का भंडार लबालब भर जाएँ ।
जब आप कुछ हिफ़ाज़त चाहें, तब आप एक होशियार हृदय पाएँ ।
जब आप कुछ दोस्त चाहें, तब आप ऐसे मित्र पाएँ जो आप के जीवन को संपन्न बनाएँ ।
जब आप ज़िंदगी चाहें, तब आप ईश्वर को पाएँ ।।
" इस दुनिया में जो आदमी खुश हैं, यह ज़रूरी नहीं कि उन के पास सब से अच्छी चीज़ें हो, पर उनके पास जो चीज़ें हैं, उन को वे खुशी से रख लेते हैं ।।"
09 June, 2011
ज्ञानेंद्रपति जी की नदी और साबुन...
आगे पढें... मधुर-कविताएँ पन्ने पर...
07 March, 2011
उस ने अपने सफर की शुरुआत चीन से किया। पहले दिन में वह एक गिरजाघर के अंदर कुछ चित्र खींच रहा था कि उस की नज़र दीवार पर लटका एक बहुत ही खूबसूरत सोने का एक दूर भाषण यंत्र पर पडी।
उस के नीचे एक सूचना भी लिखा था कि "एक कॉल का $१०,०००." महोदय ने कुतूहल के साथ वहाँ के पादरी से पूछा कि यह दूर भाषण यंत्र किस के लिए उपयोग किया जाता है ?
वहाँ के पादरी ने जवाब दिया कि यह ईश्वर से बातें करने का सीधा दूर भाषण यंत्र है, और $१०,००० देकर वह ईश्वर से बातें कर सकता है। महोदय ने धन्यवाद प्रकट किया और अपना रास्ता पकडा।
इस बार यह महोदय जापान गये। वे वहाँ के एक बहुत ही बडे गिरजाघर गये। वहाँ भी उन्होंने ऐसा एक दूर भाषण यंत्र और उस के नीचे सूचना देखी।
उन्होंने ताज्जुब के साथ वहाँ के पादरी से पूछा कि क्या वह भी ईश्वर से बातें करने का सीधा दूर भाषण यंत्र है, तो पादरी बोले कि $१०,००० देने पर वे उस दूर भाषण यंत्र के ज़रिए ईश्वर सीधा बातें कर सकते हैं।
वहाँ भी महोदय ने धन्यवाद प्रकट किया और अपना रास्ता पकडा।
उस के बाद उन्होंने पाकिस्तान, श्रीलंका, इँग्लैंड, वेस्ट इन्डीज़, आस्त्रेलिया, कानडा, होलंड, बंगलादेश, केनिया, न्यूज़ीलैंड, दक्षिण आफ्रिका, अयरलैंड आदि देशों में गया।
हर देशों के प्रमुख गिरजाघरों में उन्होंने ऐसे ही दूर भाषण यंत्र देखे। उनके साथ ही थे उन जैसे सूचनाएँ।
अमरिका के महोदय अंत में भारत पहूँचे। वे तो वास्कोडगामा का रास्ता पकडकर सीधे केरल चले आये थे।
केरल पहूँचने पर वे यहाँ के सब से प्रमुख गिरजाघर पहूँचे। उनके मन में सब से पहले दौड आया कि क्या यहाँ भी ऐसा दूर भाषण यंत्र है !
पादरी ने उन्हें दिखाया।
ऐसा ही खूबसूरत सोने का बनाया हुआ दूर भाषण यंत्र और उस के नीचे सूचना।
पर यहाँ सूचना देखकर वे चौंक पडे।
"एक कॉल का रू १." महोदय बहुत ही खबराए और पादरी से पूछा :"मैं ने दुनिया भर का सैर किया। सब प्रमुख गिरजाघरों में गया। वहाँ सब ऐसा ही खूबसूरत दूर भाषण यंत्र भी देखा। पर वहाँ तो ईश्वर से बातें करने का $१०,००० लगता था। यहाँ सिर्फ रू १ में काम चलेगा। वह कैसे भाई साहब ??"
पादरी मुस्कुराया और बोला :"भाई साहब, अब आप भारत के केरल में है, ईश्वर का अपना देश!"
"यहाँ ईश्वर से बातें करने का सिर्फ स्थानीय कॉल है!!!"
27 February, 2011
एक गाँववाला : "अरे मुल्ला, कुछ तो कहो। देखो सब लोग तुम्हारी अक्लमंदी की बातें सुनने के लिए आए हैं। "
सब मिलकर :"हाँ, हाँ कहो, कुछ तो कहो, हम सुनना चाहते हैं। "
मुल्ला : "ओहो, अरे, इन लोगों से क्या, कैसे बताऊँ, हाँ, हाँ, क्या आप लोग जानते हैं मैं क्या कहनेवाला हूँ ?"
लोग :"नहीं, नहीं, हम नहीं जानते.."
मुल्ला : "तो फिर आप से कुछ कहने का क्या फायदा ? आप तो यह तक नहीं जानते कि मैं क्या कहूँगा, ऐसे लोगों को कुछ कहना बेकार है। "
सब मिलकर :"अरे अरे मुल्ला, हम तुम्हें ऐसे नहीं जाने देंगे । "
मुल्ला : "पर आप तो यह नहीं जानते कि मैं क्या कहनेवाला हूँ । "
कुछ लोग : "हम जानते हैं, जानते हैं।"
मुल्ला : "लो, कर लो बात..., अगर जानते हैं, तो उसी बात को दोहराने का कया फायदा। देख, कुछ भी कहना बेकार है तुम लोगों को।"
कुछ लोग : "हमें पता है... आप क्या कहनेवाले हैं।"
और कुछ लोग : "हमें नहीं पता कि आप क्या कहेंगे ?"
मुल्ला : "तो फिर ठीक है, जिन्हें पता है कि मैं क्या कहनेवाला हूँ, वे उनको बता दें जिन्हें नहीं पता कि मैं क्या कहूँगा।"
और मुल्ला मंच से उतरकर भाग गये ।
अब देखें इसकी वीडियो (Youtube में भी ...)
24 February, 2011
आज के ज़माने में ...
रेलवे स्टेशनों में ..
"यात्रीगण कृपया ध्यान दें, गाडी नंबर १२३४ कन्याकुमारी से दिल्ली तक जानेवाली रप्ती सागर एकस्प्रेस थोडी ही देर में प्लैटफार्म नंबर एक पर आने की संभावना है।"
बस अड्डों में ..
" एरणाकुलम, कुमरकम, कोट्टयम, कोल्लम से होकर जानेवाली बस नंबर ४५६ स्टेशन के पश्चिमी भाग पर खडी है। य़ात्री कृपया अपनी अपनी सीटों पर बैठे रहें। "
चुनाव के अवसर पर सडकों पर ..
"आप का जनप्रिय नेता, देश को उज्वल भविष्य प्रदान करनेवाला, अन्य दलों का दुस्वप्न, श्री श्री श्री को आप के मशहूर चिह्न पर अपना बहुमूल्य मतदान देकर विजेता बनाएँ।"
सरकस के मैदानों में ..
"जंगल का राजा शेर, हाथी के साथ फुटबाल खेलनेवाला बंदर, साइकल चलानेवाले तोते आदि सब एक ही छत के नीचे - आईए, देखिए और मनोरंजन करें।"
विद्यालयों में ..
" सभी बच्चे ध्यान दें। भारत को २०११ का क्रिकेट विश्व कप प्राप्त होने की खुशी में कल स्कूल में पढाई नहीं होगी।"
नाटक रंगमंचों में ..
" श्री देवदेव नाट्य केंद्र, वाराणसी की ओर से सब से मशहूर एवं रोमांचकारी नाटक, आप के सामने प्रस्तुत हैं - बरसात की यादों में, सूत्रधार श्री देवदेव, मूलकथा श्री कैलाशनाथ, अभिनेता श्री केदारनाथ, श्री काल भैरव, श्री गंगाधर, श्रीमती महादेवी, श्रीमती अमीरा। अगली घंटी के साथ नाटक शुरू होगा। "
पुराने ज़माने में जब आज की तरह सुविधाएँ नहीं थीं, तब राजा - महाराज, लोगों की जानकारी के लिए चौराहों पर उद् घोषणाएँ सुनाया करते थे । सेवक बडे बडे ढोलक लिए यह काम करते थे। जैसे :
" सुनो, सुनो, सुनो, इस मुल्क के सभी वासियों, सुनो, सुनो, सुनो... महा राजाधिराज यह घोषणा करते हैं कि आज से ठीक पंद्रह दिनों के अंदर सभी देशवासियों से लगान वसूल किया जाएगा । सुनो, सुनो, सुनो, इस मुल्क के सभी वासियों, सुनो, सुनो, सुनो...।"
दसवीं कक्षा की आदर्श परीक्षा (model exam) में एक सवाल पूछा गया था कि रियासत देवगढ़ में नए मंत्री की ज़रूरत है, और इस के लिए एक उद् घोषणा तैयार करें । उस का जवाब इस प्रकार लिख सकते हैं ।
"सुनो, सुनो, सुनो, इस मुल्क के सभी वासियों, सुनो, सुनो, सुनो... महा राजाधिराज यह घोषणा करते हैं कि हमारे मुल्क के लिए एक नए मंत्री की ज़रूरत है। कोई शैक्षिक योग्यताओं के प्रमाण पत्र लाने की आवश्यकता नहीं । जो पुरुष अपने आप को इस के लिए योग्य समझें, वे वर्तमान दीवान सरदार सुजान सिंह से संपर्क करें। सुनो, सुनो, सुनो, इस मुल्क के सभी वासियों, सुनो, सुनो, सुनो... इस शुभ अवसर का फायदा उठाएँ ।"
31 December, 2010
उसने पूछा - " बापूजी, क्या मैं आप से एक प्रश्न पूछूँ ? "
आदमी - " क्या है बेटे, पूछो, पूछो ।"
बेटा - " बापूजी, बापूजी, आप एक घंटे में कितना कमाते हैं ? "
" अरे चुप, तुम्हें इस से क्या लेना - देना " - नाराज़गी के साथ आदमी बोला।
बेटा - " मैं जानना चाहता हूँ बापूजी, मुझे बताइए प्लीस।"
" अगर तुम जानना ही चाहते हो तो लो, एक सौ रुपया प्रति घंटा।"
(बेटे की चेहरे की खुशी मानो गायब।) वह बहुत उदासी के साथ - " बापूजी, आप मुझे पचास रुपये देंगे ? " आदमी बहुत क्रोधी हुआ - " क्यों बहस कर रहे हो ?, तू इतना नासमझ क्यों है ?, कोई तुच्छ वस्तु खरीदने के लिए ऐसी बकवास ?, चुपचाप जाओ अपने कमरे में और सोचो कि तू इतना स्वार्थी कैसे बना ?"
बेटा चुपचाप अपने कमरे गया और दरवाज़ा बंद किया ।
आदमी बैठकर अपने बेटे के बारे में सोचने लगा तो और भी ज़्यादा नाराज़ हो गया - "उस को इतना हिम्मत कहाँ से मिला कि ऐसा सवाल करने लगा ?? "
लगभग एक घंटे के बाद आदमी की नाराज़गी ज़रा शाँत हुई, वह सोचने लगा - " अगर असल में उस को किसी चीज़ की ज़रूरत होगी, वह हमेशा तो रूपया पूछता तो नहीं, आखिर वह मेरा बेटा है न ?"
आदमी अपने बेटे के कमरे गया और दरवाज़ा खोला - " बेटा, क्या तू सो गया बेटा ?"
"नहीं बापूजी, मैं अभी तक सोया नहीं । "
"तू मुझ से नाराज़ तो नहीं हो न बेटा ",आदमी बोला, "आजकल काम की अधिकता है न, इसीलिए । लो बेटा, यह लो पचास रूपये ।"
बच्चे के चेहरे पर खुशी की झलक दौड आयी, वह उठकर बैठा और अपने तकिये के नीचे कुछ ढूँढने लगा । थोडी देर बाद उस के हाथों में कुछ रुपये थे, और वह उसे गिनने लगा । आदमी यह देखकर फिर से गुस्सा होने लगा ।
बच्चा धीरे-धीरे गिना और बडी खुशी से अपने पिताजी को देखा ।
" तेरे पास पैसे थे, फिर तू ने और क्यों माँगा ?"
" मेरे पास उतने थे नहीं, पर अब है। "- बच्चा बहुत ही खुशी से बोला, " बापूजी, अब मेरे पास एक सौ रुपये हैं, क्या मैं आप का एक घंटा खरीद सकता हूँ ?, कल शाम को मैं आप के साथ खाना खाना चाहता हूँ। प्लीस, आप कल एक घंटा पहले घर आएँगे ? " यह सुनकर आदमी मानो स्तब्ध हो गया।
उस ने बच्चे को गले लगाया, और अपने किये पर क्षमा माँगने लगा ।
18 November, 2010
एक ही पौधा उन्हें है पालता
रात में उन पर चमकता चांद भी,
एक ही सी चांदनी है डालता ।
एक सी उन पर हवाएँ हैं बहीं
पर सदा ही यह दिखाता है हमें,
ढंग उनके एक से होते नहीं ।
फाड़ देता है किसी का वर वसन
प्यार-डूबी तितलियों का पर कतर,
भँवर का है भेद देता श्याम तन ।
भँवर को अपना अनूठा रस पिला,
निज सुगन्धों और निराले ढंग से
है सदा देता कली का जी खिला ।
है खटकता एक सबकी आँख में
दूसरा है सोहता सुर शीश पर,
किस तरह कुल की बड़ाई काम दे
अवलम्ब : विकिपीडिया , अन्य वेब साइट्स ...
15 September, 2010
एक भिखारी की आत्म कहानी
जाडे का प्रात:काल था। शरीर को कम्पित करनेवाला शीत पड रहा था। घर के सारे व्यक्ति बैठे हुए चाय पी रहे थे। आनन्द का वातावरण अपनी चरम सीमा पर था - तभी द्वार पर से किसी ने पुकारा, " भगवान तुम्हारा भला करे, दो रोटी का आटा दिला दो।" इस एक पुकार की तो हम में से किसी ने लेशमात्र भी चिन्ता न की, परंतु जब थोडी देर के बाद पुन: वही करुण एवं दीनता से भरे हुए शब्द सुनाई पडे तो मैं उठा। उस समय मेरे मन में उस भिक्षुक के प्रति दया नहीं थी बल्कि मैं सोच रहा था कि ये भिक्षुक कार्य क्यों नहीं करते? ये समाज पर भार बनकर क्यों रहते हैं? इस प्रकार के विचारों में निमग्न मैं दरवाज़े पर गया। वहाँ एक दीन वृद्ध भिखारी को देखा, जो ठंड के कारण थर-थर काँप रहा था। भूख के कारण रो रहा था। जाडे से बचने के लिए उसके पास पर्याप्त वस्त्र भी नहीं थे। मैं ने कहा, "आओ अंदर, मैं तुम्हें भोजन दे दूँगा।" और वह भिखारी घर के भीतर चला आया। मैं ने उसे खाने के लिए रोटियाँ दीं और वह खाने लगा। भोजन करके जब वह निवृत्त हुआ तो मैं ने पूछा, "तुम इस वेदना एवं दुख से भरी हुई अवस्था को किस प्रकार प्राप्त हुए?”
मेरे इस प्रश्न को सुनकर क्षण भर उसने मेरी ओर देखा और बोला – “बाबूजी, इन बातों में क्या लोगे? यदि जानना ही चाहते हो तो सुनो। जहाँ तक मुझे याद है, जब मैं छोटा था तब मेरे घर में किसी प्रकार का अभाव नहीं था। किन्तु समय बदलता रहता है, क्योंकि कभी दिवस है और कभी अँधेरी रात। किसी मनुष्य को सर्वदा सुख नहीं मिला करता और यही मेरे साथ भी हुआ था।
मैं एक किसान परिवार का सदस्य हूँ। मेरे पूर्वज खेती करते थे। मैं भी पहले खेती करता था। जब आय कम और खर्च ज़्यादा पडने लगे तो गाँव के ज़मींदार से कर्ज़ लेकर खेती करने लगा। कर्ज़ कैसे चुकाता? पहले तो बैल बेचा। अंत में खेत को गिरवी रखकर कर्ज़ चुकाया। फिर क्या करूँ? अब तो खेत भी नहीं रहा और मैं किसान भी नहीं रहा।
पहले मज़्दूरी करता था। खेती के अलावा कुछ जानता भी नहीं था। कहीं नौकरी करके जीवन बिता लूँ तो कहाँ मिलती है इस बुढे को नौकरी ?
बाबूजी, समाज हमें फटकारता है। पर क्या वह कभी सोचता है कि इतने भूखों की जीविका का प्रबंध कैसे किया जाय ? भिक्षा तो हम लोगों को विवश होकर माँगनी पडती है। कौन ऐसा होगा, जो कि मेहनत व मज़दूरी करने के बजाय दर-दर फटकार सुनने के लिए जाएगा ? भिखारी तो जीवित ही मृतक के समान होता है। मैं भी अब निराश्रित होकर भीख माँगता फिरता हूँ, यदि भीख न माँगूँ तो इस वृद्ध अवस्था में क्या करूँ ? आँखों से दिखाई नहीं देता, दो डग चलने पर कदम लडखडाने लगते हैं।
भिखारी के जीवन की इस कष्टमय कहानी सुनकर मेरी आँखों से आँसू निकल पडे। मैं ने सोचा, मनुष्य का भाग्य कितना क्रूर होता है ! मनुष्य को वह कितना बदल डालता है।
अवलम्ब : आदर्श हिंदी निबंध
14 September, 2010
आज हिंदी दिवस
प्यारे अध्यापक बंधुओं, केरल के स्कूलों में इस शुभ अवसर पर हम क्या-क्या कार्यक्रम चला सकते हैं ?
प्रातः सभा में प्रार्थना गीत।
प्रातः सभा में भाषण (विषय - राष्ट्रभाषा का महत्व)।
प्रातः सभा में चर्चा (विषय – नई पीढी की दृष्टि में भाषा का उपयोग)।
प्रातः सभा में कविता आलापन।
स्कूल की हिंदी सभा में प्रतियोगिताएँ - वाचन, लेखन आदि।
आप के लिए एक प्रार्थना गीत --
हम को मन की शक्ति देना, मन विजय करें
दूसरों की जय से पहले, खुद की जय करें
हम को मन की शक्ति देना ...
भेद-भाव अपने दिल से, साफ़ कर सकें
दूसरों से भूल हो तो, माफ़ कर सकें
झूठ से बचे रहें, सच का दम भरें
दूसरों की जय से पहले, खुद की जय करें
हम को मन की शक्ति देना ...
मुश्किलें पड़ें तो हम पे, इतना कर्म कर
साथ दें तो धर्म का, चलें तो धर्म पर
खुद पे हौसला रहे, सच का दम भरें
दूसरों की जय से पहले, खुद की जय करें
हम को मन की शक्ति देना ...
देखें इसकी विडियो ...
सारे हिंदुस्तानियों और हिंदी प्रेमियों को हिंदी दिवस की शुभ कामनाएँ !
10 September, 2010
एक दिन एक आदमी नाई की दूकान अपने बाल काटने और दाढी काट छाँट करने गया। जैसे ही नाई ने अपना काम शुरू किया, दोनों ने बातें करना भी शुरू किया। उन दोनों ने कई बातें की, और बातें करते करते ईश्वर के बारे में चर्चा शुरू किया।
नाई बोला, "ईश्वर का कोई अस्तित्व है, इस पर मैं विश्वास नहीं रखता।"
ग्राहक ने पूछा, "भई, ऐसा क्यों कहते हो, यह अनुचित है। "
जवाब में नाई बोला, "आप बाहर जाकर गलियों में देखिए, तब पता चल जाएगा कि इस दुनिया में ईश्वर का कोई अस्तित्व है कि नहीं।
अगर इस दुनिया में ईश्वर का कोई अस्तित्व होता तो, लोगों को बीमारियाँ क्यों लगती , दर्द क्यों सहनी पडती ?
अनाथ बच्चे, भुखमरे, लंगडे, अंधे ये सब क्यों हैं यहाँ ?
ईश्वर ऐसा क्यों होने देता है ?"
हमारे ग्राहक भैया ने पहले सोचा, फिर चुप हो गये। उन्होंने कुछ ज्य़ादा कहना नहीं चाहा।
नाई ने काम पूरा किया और ग्राहक पैसे देकर बाहर चला गया।
जैसे ही ग्राहक नाई की दूकान से बाहर निकला, उसकी नज़रें एक बूढे आदमी पर पडीं।
वह बूढा आदमी बहुत ही दर्दनाक स्थिती में था। वह बहुत गंदा और लंबे लंबे बिखरे बालोंवाला था, उसके दाढी और केश कर्तन किए मानो, कई साल हो गये हो।
ग्राहक के दिमाग में कोई सोच घुसकर आयीं।
वह तुरंत वापस नाई के दूकान का दरवाज़ा खोला, और नाई से बोला,
"इस दुनिया में नाई लोग खतम हो गये हैं। "
यह सुनकर नाई बेचैन हो गया। उसने पूछा, " ऐसी क्या बात हो गयी? अभी अभी तो मैं ने आप के केश कर्तन किये थे, मैं एक नाई हूँ। "
ग्राहक बोला, " अगर आप नाई हैं तो यहाँ लंबे लंबे बिखरे बाल और दाढीवाला आदमी क्यों है, जैसे बाहर दीख रहा है ? "
"ओह, ऐसी बात?", नाई बोला, "वह तब होता है, जब लोग नाई के पास नहीं आते।"
“ हाँ, हाँ, वही बात। ”, ग्राहक ने दृढतापूर्वक कहा ,“ वही बात है, वास्तव में कि ईश्वर का अस्तित्व है। ”
“ इतनी आफत और परेशानियाँ लोगों को होती है तो इसका दोष ईश्वर पर मत डालो । लोगों के मन में ईश्वर का विचार नहीं है, इसलिए सब वेदनाएँ होती है।।।”