"सिंहासन खाली करो " कविता में भारत के नए शासकों को जनता की शक्ति के बारे में चेतावनी दे रहे हैं।
सदियों की ठंडी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्ठी सोने का ताज पहन इठलाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
मिट्ठी सोने का ताज पहन इठलाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
भारत की जनता सदियों से चुप-चाप बैठी थी। आज वह जाग उठी है। यहाँ मिट्ठी का मतलब साधारण जनता है। आज समय उनके साथ है और वे आ रहे हैं। हे शासक, उनको जगह दो, तू सिंहासन छोडकर भाग जा, जनता सिंहासन लेने के लिए आ रही है।
जनता? हाँ, मिट्ठी की अबोध मूरतें वही,
जाडे-पाले की कसक सदा सहनेवाली,
जब अंग-अंग में लगी साँप हों चूस रहे,
तब भी न कभी मुँह खोल दर्द कहनेवाली।
जाडे-पाले की कसक सदा सहनेवाली,
जब अंग-अंग में लगी साँप हों चूस रहे,
तब भी न कभी मुँह खोल दर्द कहनेवाली।
जनता अबोध है, उनके बीच के लोग ही उनका शोषण करती रही, फिर भी उन्होंने कुछ नहीं किया। जनता ने अपना दर्द किसी से आज तक नहीं बताया।
हुँकारों से महलों की नींव उखड जाती,
साँसों के बल से ताज हवा में उडता है,
जनता की रोक राह, समय में ताब कहाँ?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुडता है।
साँसों के बल से ताज हवा में उडता है,
जनता की रोक राह, समय में ताब कहाँ?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुडता है।
जनता की शक्ति बहुत बडी है। उनके हुँकारों से शासक वर्ग के महलों की नींव उखड सकती है। जनता के साँसों के बल से ही शासकों के ताज हवा में उड सकती है। उनकी राह रोकना किसी से मुमकिन नहीं है। आज समय उनके साथ है।
अब्दों, शताब्दियों, सहस्राब्द का अंधकार
बीता; गवाक्ष अंबर के दहके जाते है,
यह और नहीं कोई, जनता के स्वप्न अजय
चीरते तिमिर का वक्ष उमडते आते हैं।
बीता; गवाक्ष अंबर के दहके जाते है,
यह और नहीं कोई, जनता के स्वप्न अजय
चीरते तिमिर का वक्ष उमडते आते हैं।
सदियों तक भारत की जनता गुलामी की अंधकार में डूबे बैठे थे। आज उनके सपनों पर प्रकाश फैल रहा है। जनता के स्वप्न आज साकार होने जा रहे हैं । तिमिर का वक्ष चीरते हुए जनता के स्वप्न अजय हो रहे हैं।
सबसे विराट जनतंत्र जगत का आ पहूँचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तैयार करो,
अभिषेक आज राजा का नहीं प्रजा का है,
तंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तैयार करो,
अभिषेक आज राजा का नहीं प्रजा का है,
तंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।
भारत जगत का सबसे बडा जनतंत्र राष्ट्र है। यह आज सब के सामने आ गया है। यहाँ की जनता आज सिंहासन पर बैठने के लिए तैयार हैं। आज प्रजा का अभिषेक होने जा रहा है। यहाँ की तैंतीस कोटि जनता मुकुट धरेंगे।
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