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13 November, 2009
और
कुछ
विश्लेषणात्मक
टिप्पणियाँ…
मुंड
मुडाए
हरि
मिलै
,
सब
कोई
लेय
मुडाय
।
बार
-
बार
के
मुँडते
,
भेड
न
बैकुंड
जाए
॥
ईश्वर
का
वरदान
प्राप्त
करने
के
लिए
लोग
बाल
मूंडते
हैं।
उनका
विश्वास
यह
है
कि
ऐसा
करने
से
मरने
के
बाद
वे
वैकुँठ
यानि
ईश्वर
के
पास
जा
पाएँगे।
भेडों
को
हम
हर
साल
पूरा
शरीर
मूंडते
हैं।
क्या
भेड
भी
वैकुँठ
जाएँगे
?
ईश्वर
विश्वास
के
प्रति
अर्थहीन
काम
करने
से
कुछ
नहीं
मिलता
है।
1 comment:
Dr. Shreesh K. Pathak
said...
बिलकुल ठीक कहा..कबीरदास ने ..
Saturday, November 14, 2009
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बिलकुल ठीक कहा..कबीरदास ने ..
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